Khallari Mata Temple History in Hindi ( खल्लारी मंदिर का इतिहास)
महासमुन्द से 25 किमी दक्षिण की ओर खल्लारी गांव की पहाड़ी के शीर्ष पर खल्लारी माता का मंदिर स्थित है। प्रतिवर्ष क्वांर एवं चैत्र नवरात्र के दौरान बड़ी संख्या में भक्तों की भीड़ इस दुर्गम पहाड़ी में दर्शन के लिये आती है। हर साल चैत्र मास की पूर्णिमा के अवसर पर वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि महाभारत युग में पांडव अपनी यात्रा के दौरान इस पहाड़ी की चोटी पर आये थे, जिसका प्रमाण भीम के विशाल पदचिन्ह हैं जो इस पहाड़ी पर स्पष्ट दिख रहे हैं।
छत्तीसगढ़ के प्राचीन एवं ऐतिहासिक व धार्मिक स्थल है ‘खल्लारी’ इसका उल्लेख द्वापर युग से होता आ रहा है। द्वापर युग में हिडिम्ब नायक राक्षस का राज्य था जिसकी राजधानी सिरपुर थी हिडिम्ब ने एक वाटिका खल्लारी में बनवाया था जहां समय-समय में वह घुमने आता था इसी वाटिका के कारण इस स्थान का नाम खल्लवाटिका अर्थात राक्षस की वाटिका के रू में जाना जाता था हिडिम्ब की बाहन हिडिम्बनी थी जो अपने भाई के साथ वाटिका घुमने आती थी और इस स्थान में स्थित देवीशक्ति की पूजा अर्चना करती थी।
द्वापर युग में ही पांडव अपना राज्य छोड़कर 12 वर्ष का निर्वासन कर रहे थे इसी निर्वासनकाल में पांडव इस क्षेत्र से गुजरे महाराज धृटराष्ट के पुत्र दुर्योधन, शकुनी और अन्य कॉरवों ने मिलकर पांडवों की हत्या करने के लिए षड़यंत्र रचा था इस षडयंत्र के अंतर्गत उन सभी ने मिलकर लाख और मांश आदि से लाक्षागृह बनाया और उसमें आग लगा दी परंतु पाण्डव ने गुप्त मार्ग से निकलकर दक्षिण की ओर इसी जगह में भटकते-भटकते पहुंचे और स्वयं को सुरक्षित महसुस कर कुछ देर इसी जगह पहाड़ में विश्राम करने का निर्णय लिया तभी राक्षसों के राजा हिडिम्ब ने मनुष्य की गंध महसुस कर लिया जारा हिडिम्ब ने अपनी बहन हिडिम्बनी को बुलाया और उसे उन सभी मनुष्यों को अपने निवास स्थान तक लाने का काम सौंपा जब राक्षसी हिडिम्बनी पांडवों के पास पहुंची तो देखा कि सभी पांडव तो विश्राम कर रहे थे परंतु उनमें से एक जागकर पहरा दे रहा था वे पांडु पुत्र भीम थे राक्षसी हिडिम्बनी ने भी को देखते ही उन पर मंत्र मुग्ध हो गई और उनसे प्रेम करने लगी और सुंदर सा रूप धारण कर उनके समीप जाकर उसे विवाह करने का प्रस्ताव रखी परंतु हिडिम्बनी को अपने भाई के समान ही अत्यंत बल शाली वर चाहिये था इस के लिए उसने भीम की परीक्षा ली और भीम ने अपनी वीरता का परिचय खल्लारी पहाड़ी के ऊपर चट्टान में दिया, भीम ने अपना पैर चट्टान पर पुरी शक्ति के साथ दबाया जहां-जहां पैर पर बल दिया गयसा वहां-वहां उसका पैर चट्टान पर धस गया।
इस दृश्य को देखकर हिडिम्बनी प्रसन्न हो गई इधर हिडिम्ब देर होने के कारण अपनी बहन को ढूंडते-ढूंडते वहां पर पहुंचा तो देखा कि उसकी बहन पांडव के साथ है। परंतु जैसे ही पता चला कि हिडिम्बनी भी से प्रेम करने लगी है और उससे विवाह करना चाहती है तो हिडिम्ब क्रोधित होकर भीम को युद्ध के लिए ललकारा तब भीम और हिडिम्ब के बीच भयंकर युद्ध हुआ। इस युद्ध में भीम ने हिडिम्ब का वध कर दिया और फिर भीम और हिडिम्बनी का गंधर्व विवाह देवी के समक्ष हुआ एक वर्ष में ही हिडिम्बनी और भीम का पुत्र का जन्म हुआ उत्पन्न होने समय उसके सिर पर केश (उत्कच) न होने के कारण उसका नाम घटोत्कच (घट+उत्कच) रखा गया वह अत्यंत मायावी निकला और जन्म लेते ही बड़ा हो गया और फिर हिडिम्बनी अपने पुत्र को पांडवों को सौंपकर वह हिमाचल प्रदेश (मनाली) में चली गई और वहां उसका दैवीकरण हुआ और आज भी वहां हिडिम्बनी देवी के रूप में स्थित है।
आज भी खल्लारी पहाड़ में भीम से संबंधित अनेक चीजें देखने को मिलती है जैसे भी पांव(निशान), भीम चुल्हा, भीम खोह, भीम का हंडा आदि यह बातें यह प्रमाणित करता है कि भीम और हिडिम्बनी के विवाह और घटोत्कच के जन्म से संबंधित कुछ न कुछ सत्यता इसी पहाड़ों के जंगल में मिलती है। महाभारत में इन प्रणय का प्रमाण उपलब्ध है।
वर्तमान युग में खल्लारी का उल्लेख 15वीं सदी से ज्ञात होता है जब रतनपुर राज्य दो भागों में बंट गया एक ही राजधानी रतनपुर और दूसरे की राजधानी रायपुर में स्थापित कि गई थी दोनों राज्यों में 18-18 गढ़ थे खल्लारी भी रायपुर राज्य का एक गढ़ था खल्लारी के अंतर्गत 84 ग्राम शासित होते थे रायपुर के शासक ब्रह्मदेव का एक शिलालेख विक्रम संवत 1471 (19 जनवरी सन 1415) खल्लारी में प्राप्त हुआ हैइस शिलालेख से ज्ञात होता है कि हैहयवंश कि कलचुरी नामक शाखा में राजा सिंघण के बेटे रामचंद्र ने नागवंश के भोडिंगदेव को युद्ध में घायल किया था रामचंद्र का पुत्र ब्रह्मदेव था जो शिव जी का भक्त था शिलालेख में अंकित है कि वह योद्धाओं के लिए यम के समान, याचकों के लिए कल्पवृक्ष के समान था इस शिलालेख के सांतवे और आठवें श्लोक में खल्ल वाटिका नगरी के वर्णन में लिया गया है कि शुभ देवालय कि स्थापना वेदाध्ययन सुखी ब्राह्मण का वास, लक्ष्मी के विलास से धनी लोगों का वास इत्यादि का वर्णन मिलता है नौवे श्लोक में मोची देवपाल की वंशावली एवं दसवें श्लोक में उनके द्वारा नारायण का मंदिर निर्मित कराये जाने का उल्लेख मिलता है।
रायपुर राज के कुछ समय के लिए अंशाति फैल गई फलस्वरूप कलचुरी शाक वे खल्लारी को अपनी राजधानी बनाई और इसे वाटिकाओं से सुशोभीत कराए जाने का उल्लेख मिलता है। खल्लारी में प्राप्त शिलालेख के आधार पर देवपाल मोची का वर्णन मिलता है जो किर्तीवान था अपने कार्य में दक्ष था ब्राह्मणी का अनुचर जैसा था विभिन्न धर्म कायो का अभिलााषी था उसने अपनी शक्ति के अनुसार महान भक्ति सो नारायण (भगवाान विष्णु) का मण्डप युक्त मंदिर खल्लारी में बनवााया था मोची द्वारा मंदिर निर्माण्एा देश के इतिहास में भावात्मक एवं साामुदायिक एकता का एक अनुठा प्रमाणिक उदाहरण है।
जहां न केवल एक मोची को मंदिर बनवाने का अधिकार था बल्कि उसो इसा कार्य में राजा के साथ-सााथ ब्राह्मणों एवं कायस्थ जैसी जातियों का सहयोग भी प्राप्त था शिलालेख में मां भगवती की पूजा का भी उल्लेख मिलता है। खल्लारी में कल्चुरी शासकों के कार्यकाल के एक किलो का अवशेष भी दिखाई देता है गांव में अनेक नक्काशीदार पत्थर के स्तंभ भी पाए गए है। खल्लारी में एक प्राचीन मंडपनुमा खंडहर है जिसे लोग ‘लखेसारी’ गुडी का नाम देते है यहां तालाबों और पोखरों कि संख्या बहुत अधिक है। यहां 126 तालाबों का दस्तावेज भी प्राप्त है यह सभीी बातें खल्लारी की प्राचीनता का प्रमाण देते है।
रायपुर और रतनपुर के कुल्चुरी शासकों पर मराठों का अधिपत्य हो जाने के बाद खल्लारी का इतिहासा अंधकारमय हो जाता है। परंतु प्राचीन परिपाटी के अनुसाार मां खल्लारी की पूजा अर्चना में किसी प्रकार का व्यवधान नहीं आया जो निरंतर जारी है।
खल्लारी को कालांतर में खल्लवाटिका के नाम से जाना जाता रहां खल्लारी का एक मतलब खल्ल+अरी अर्थात दुष्टों का नाश करने वाली होता है संभवतया इसी कारण देवी माता का नाम खल्लारी हुआ ऐसा मानना है कि यहां का बाजार (हाट) काफी प्रसिद्ध था देवी मां नवायुवती का रूप धारण कर बेमचा (महासमुंद) सो यहां हाट में आया करती थी मां के इस लाावण्य रूप को देखकर एक बंजारा उन पर मोहित हो गया और मां का पिछा करने लगा बार-बार चेतावानी के बाद भी जब वह नहीं माना तब देवाी ने उसो श्राप देकर पत्थर का बना दिया जो आज भी गोड पत्थर के नाम से जाना जाता है।
इधर खल्लारी माता ने पाषाण रूप धारण कर पहाड़ को अपना निवास बना लिया और यहां के ग्रामीण को सपना देकर कहा कि मैं यहां के पहाड़Þी में पत्थरों के बीच निवाास हूं। प्रकाश पूंज निकल रहा है। तब उस ग्रामीण व्यक्ति ने ग्रामवासियों के साथ उस स्थान पर गए तो वाहां देखा कि मां के पाषाण रूप में उनकी ऊंगली स्वष्ट रूप से दिखाई दे रहां था तब से ग्रामवासियों ने वहां पूजा अर्चना प्रारंभ किया जो आज भी निरंतर जारी है।
क्षेत्र के लोग मां खल्लारी को अपना रक्षक मानते है प्राकृतिक विपदा के पूर्व माता पहाड़ी सो आवाज देकर पूजारी को सजग कर दिया करती थी।खल्लारी के विकास की गाथा
प्रारंभिक चरण में खल्लारी पहाड़ी के ऊपर कोई मंदिर नहीं था केवल एक खोह था जहां पर माता की ऊंगली का निशान था और उसी की पूजा अर्चना कि जाती थी दर्शनार्थियों की कठिनाईयों को देखते हुए महासमुंद पदस्थ तहसीलदार दुर्गाप्रसाद एवं हरिदास मेहता के सहयोग से सन 1940 में 481 सीढ़ियों का निर्माण कराया गया श्री दुर्गा प्रसाद वे माता के खोह की जगह एक छोटा सा मंदिर बनवाया जिसमें ठीक से आने-जाने की जगह नहीं थी इसी कमी को ट्रस्ट पूर्व अध्यक्ष श्री जयलाल प्रसाद चंद्राकर द्वारा अपने कार्यकाल (1965-70) में दूर कर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया था खल्लारी के पूर्व विधायक मध्यप्रदेश शासन के पूर्व मंत्री लक्ष्मीनारायण इंदुरिया ने अपने कार्यकाल में खल्लारी पहाडी पर विद्युत व्यवस्था का कार्य (1984-85) में कराया इस व्यवस्था में मां खल्लारी की भव्यता में चार चांद लग गया।
श्री इंदुरिया जी ने पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए एक दिव्य बसेरा का भी निर्माण कराया है वास्तव में श्री इंदुरिया ही प्रगति के सोपान रखने वाले पहले राजनेता है। पहाड़ी के ऊपर दर्शनार्थियों को पीने के लिाए पानी की अति आवश्यकता थी जिसकी पूर्ति ट्रस्ट कमेटी द्वारा अपने संसाधन सो किया जाती रही इस कमी को दूर करने का प्रयास सांसद श्री पवन दीवन जी, पूर्व विधायक श्री भेखराम साहू जी एवं पूर्व रायपुर के जिलाधीश श्री डीपी तिवारी जी के संयुक्त प्रयास से पाइप लाईन बिछाकर पहाड़ी ऊपर निरंतर जला आपूर्ति का महती कार्य किया गया जल आपूर्ति में कालांतर में उत्पन्न हुई कठिनाईयों को क्षेत्र के पूर्व सांसद श्री चंद्रशेखर साहू जी ने पंप सेट और जनरेटर किया व्यवस्था कराकर दूर किया।
पहाड़ के नीचे माता राऊर (स्थल)मंदिर की स्थापना माता के आदेशानुसार करायी गई बताया जाता है दुर्गम पहाड़ी पर रास्ता सुगम नहीं होने के कारण बुजुर्गों एवं नि:शक्त जनों के मां के दर्शन के लिए तकलीफों का सामना करना पड़ता था माता ने यहां के माल गुजार गड़ाऊ गौठिया को माता न सपने में आदेश दिया कि मेरे द्वारा फेकी जा रही कटार जहां गिरेगी हां मुर्ति की स्थापना कि जाए जो भक्त पहाड़ी पर नहीं चढ़ पायेगे उन्हें नीचे पूजा व दर्शन से पहाड़ी की भांति पुण्य लाभ प्राप्त हो सकेगा। गड़ाऊ गौठिया ने माता के आदेशानुसार नीचे मंदिर बनवाया जहां कटार गिरी थी चंद्रभान अग्रवाल द्वारा प्रदान कि गई। इस मंदिर का जीर्णोद्धार का कार्य प्रगति पर है।
मंदिर ट्रस्ट द्वारा यात्रियों की सुविधा को देखते हुए रोपवे की मांग निरंतर ट्रस्ट द्वारा छत्तीसगढ़ शासन से किया जा रहा है।
मनोकामना ज्योति प्रज्जवलित के संबंध में
सन् 1985 में सर्वप्रथम नवरात्रि मे ज्योति कलश प्रज्जलित करना प्रारंभ हुआ जिनकी संख्या 11 है। धीरे-धीरे इसकी संख्या में वृद्धि हुई और आज हजारों की संख्या में यहां मनोकामनाएं ज्योति प्रज्जवलित किया जाता है।
खल्लारी में अन्य दशर्निय स्थल
माता के दर्शन के बाद परिक्रमा के साथ गुफा में मां दंतेश्वरी के अलावा अनेक ऐसे दर्शन होते है जिसे महाभारत काल के पाण्डवों के बनवास से जुड़ा होना मानते है ऐसा माना जाता है यहां पत्थर पर भीम के पांव का निशान, भीम चुल्हा आदि देखा जा सकता है।
यहा कि अधिकांश बाते भीम से जुडी हुई मिलती है जिसमें चमत्कृत कर देने वाली प्रकृति की रचना नाव के आकार का विशाल पत्थर विशेष उल्लेखनीय है। जिसे भीम की नांव भी कहा जाता है। सैकड़ों टन वजनी यह पत्थर पहाड़ी के एक ऐसे किनारे पर स्थित है जिसका आधा भाग सैकड़ों फीट गहरायी कि ओर है। यह विशालकाय शिला एक छोटे से पत्थर पर अपना अनूठा संतुलन प्रस्तुत कर दर्शकों को प्रकृति के आगे नमन करने को बाध्य कर देता है। इसे देखने मात्र से लगता है कि थोडे धक्के से पत्थर सैकड़ों फुट नीचे जा गिरेगा किंतु हजारों साल यह अपने अनुठे संतुलन का अनवरत परिचय दे रहा है।
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