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बुधवार, 29 अगस्त 2018

Red Symbol Of Love Laxman Mandir | प्रेम का लाल प्रतीक लक्ष्मण मंदिर

Red Symbol Of Love Laxman Mandir | प्रेम का लाल प्रतीक लक्ष्मण मंदिर



Hello! दोस्तों आपने ताज महल के बारे में तो बहोत सुना होगा इसे लोग “प्यार की निशानी” भी कहते है जो आगरा में स्थित है। आज हम आपको ताजमहल से लगभग 11 सौ वर्ष पूर्व स्मारक“प्यार का लाल प्रतीक” के नाम से प्रशिद्ध लक्ष्मण मंदिर की,जो  छत्तीसगढ़ में स्थित हैं।

लक्ष्मण मंदिर सिरपुर / Laxman Mandir



सिरपुर एक प्राचीनतम नगरी व छत्तीसगढ़ कि राजधानी थी जो छत्तीसगढ़ कि जीवनदायनी नदी चित्रोतपल (महानदी) के तट पर स्थित है |सिरपुर छत्तीसगढ़ के महासमुन्द जिले पर स्थित है| राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 6 पर आरंग से 24 कि.मी आगे बांयी ओर लगभग 16 कि.मी पर सिरपुर स्थित है रायपुर से सिरपुर कि दूरी 59 कि.मी है।

                    आगरा में अपनी चहेती बेगम आरजूमंद बानो (मुमताज) की स्मृति में शाहजहां ने ईसवी 1631-1645 के मध्य ताजमहल का निर्माण कराया। सफेद संगमरमर के ठोस पत्थरों को दुनियाभर के बीस हजार से भी अधिक शिल्पकारों द्वारा तराशी गई इस कब्रगाह को मुमताज महल के रूप में प्रसिद्धि मिली। लेकिन लक्ष्मण मंदिर की प्रेम कहानी ताजमहल से भी अधिक पुरानी है। दक्षिण कौशल में पति प्रेम की इस निशानी को भूगर्भ से उजागर हुए तथ्यों से स्पष्ट है कि  635-640 ईसवीं में राजा हर्षगुप्त की याद में रानी वासटादेवी ने बनवाया था। खुदाई में मिले शिलालेखों के मुताबिक प्रेम के स्मारक ताजमहल से भी अधिक पुरानी प्रेम कहानी लक्ष्मण मंदिर स्मारक के रूप में प्रमाणित है।


          छठी शताब्दी में निर्मित भारत का सबसे पहला ईंटों से बना मंदिर यहीं पर है. सोमवंशी नरेशों ने यहां लाल ईंटो से राम मंदिर और लक्ष्मण मंदिर का निर्माण कराया था. अलंकरण, सौंदर्य, मौलिक अभिप्राय व निर्माण कौशल की दृष्टि से यह अपूर्व है। सिरपुर का पुरा इतिहास लक्ष्मण मंदिर के वैभव से सदैव जुड़ा रहा। हरेक कालक्रम में इससे जुड़े नए तथ्य भी सामने आए, जिसमें लगभग पंद्रह सौ वर्षों पूर्व निर्मित ईंटों से बनी इस इमारत की शिल्पगत विशेषताओं की अधिक चर्चा की गई।


महाभारत काल में इसका नाम चिनागढ़पुर था |ईशा पुर 6 वी शताब्दी में इसे श्रीपुर कहा जाता था 5 वी सदी से 8 वी सदी के मध्य यह दक्षिण कोशल कि राजधानी थी 7 वी सदी के चीनी यात्री हेडसम भारत आया था उस समय उसने पुरे भारत कि यात्रा कि थी वा घूमते हुवे श्रीपुर आया था तब उस समय वहा पर बौद्ध धर्म विकसित अवस्था में था। तात्कालिक समय में पाण्ड़ुवंश शासण कर रहा था| उसकी माता वासटा ने अपने पति हर्षगुप्त कि याद में लक्ष्मण मंदिर का निर्माण करवाया था| लाल इटो से बना यह मंदिर विश्व प्रसिद्ध हैं।



सन 1977 में यहाँ पर पुरातत्व विभाग द्वारा यहाँ पर खुदाई का कार्य करवाया था जिसमे अनेक पुरातात्विक सामग्री मिली है जैसे शिला लेख ,ताम्र पत्र बौद्ध विहार अनेक प्राचीन मुर्तिया प्राप्त हुवा था, जो अपने आप में अध्भूत है। यहाँ पर अति प्राचीन मंदिर वा मुर्तिया स्थित है जिसे एक संग्राहलय में सजो के रखा गया है जिसे आप एक साथ देख सकते है। मंदिर अपनी बनावट और महीन नक्काशी के लिये प्रसिद्ध है सिरपुर में लक्ष्मण मंदिर के साथ -साथ बहुत से मंदिर देखने योग्य है जिसमे प्रमुख गंधेश्वर महादेव मंदिर ,राधा कृष्णा,चंडी मंदिर ,आनंद प्रभु कुटीर विहार प्रमुख रूप से है। यहा पर अभी भी खुदाई करने से पुराने अवशेस मुर्तिया आदि मिलती है। सिरपुर का इतिहास अभी और खोजना बाकि है।




यहाँ पर सिरपुर के सम्मान में सिरपुर महोत्सव का आयोजन शासन के द्वार किया जाता है जिसमे भारी संख्या में लोग यहां उपस्थिति होते है और दे रंगारंग धार्मिक कार्यक्रम का आनंद उठाते है। यहा पर भारी मात्रा में सावन के महीने में शिव भक्त आतें है और भगवान गंधेश्वर को जल अभिषेक करते है पूरा वातावरण शिव भक्ति में मंगन रहते है, यहाँ पर प्रतिवर्ष शिवरात्रि पर 3 दिनों का मेला लगता है तब यहां का भीड़ देखने लायक होता है। यहाँ पर भारत से हे नहीं देश - विदेश से इस नगरी और लक्ष्मण मंदिर को देखने के लिये आते है। सिरपुर एक उत्तम पर्यटन स्थल है सिरपुर प्राकृतिक दृष्टी से परिपूर्ण है यहाँ के घने जंगल के बीच मानो सिरपुर प्राकृति की गोद मे स्थित है।



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भारतवर्ष की पावन भूमि के हृदय में स्थित छत्तीसगढ़ अनादिकाल की देवभूमि के रूप में प्रतिष्ठित है. इस भूमि पर विभिन्न संप्रदायों के मंदिर, मठ, देवालय हैं जो इसकी विशिष्ट संस्कृति और परंपराओं को और भी सुदृढ़ बनाते हैं। ऐसी ही विशिष्टता को सदियों से समेटे रहा है छत्तीसगढ़ का सिरपुर स्थित लाल ईंटों से बना मौन प्रेम का साक्षी लक्ष्मण मंदिर. बाहर से देखने पर यह सामान्य हिंदू मंदिर की तरह ही नज़र आता है, लेकिन इसके वास्तु, स्थापत्य और इसके निर्माण की वज़ह से इसे लाल ताजमहल भी कहा जाता है. चूंकि, यह कौशल प्रदेश के हर्ष गुप्त की विधवा रानी वासटा देवी के अटूट प्रेम का प्रतीक बताया जाता है, इसलिए जानना दिलचस्प रहेगा– बौद्ध धर्म का तीर्थ रहा सिरपुर!
               


छत्तीसगढ़ में महानदी के तट पर स्थित सिरपुर का अतीत सांस्कृतिक विविधता व वास्तुकला के लालित्य से ओत-प्रोत रहा है। इसे 5वीं शताब्दी के आसपास बसाया गया था. ऐसे प्रमाण मिलते हैं कि यह 6ठी सदी से 10वीं सदी तक बौद्ध धर्म  का प्रमुख तीर्थ स्थल रहा. खुदाई में यहां पर प्राचीन बौद्ध मठ भी पाए गए, वह तो 12वीं सदी में आए एक विनाशकारी भूकंप ने इस जीवंत शहर को पूरी तरह से तबाह कर दिया. कहते हैं इस आपदा से पहले यहां बड़ी संख्या में बौद्ध लोग रहा करते थे. प्राकृतिक आपदाओं के कारण उन्हें इस शहर को छोड़ना पड़ा



प्राकृतिक आपदाओं से बेअसर लक्ष्मण मंदिर की सुरक्षा और संरक्षण के कोई विशेष प्रयास न किए जाने के बावजूद मिट्टी के ईंटों की बानी यह इमारत अपने निर्माण के चौदह सौ सालों बाद भी शान से खड़ी हुई है। 12वीं शताब्दी में भयानक भूकंप के झटके में सारा श्रीपुर (अब सिरपुर) जमींदोज़ हो गया। 14वीं-15वीं शताब्दी में चित्रोत्पला महानदी की विकराल बाढ़ ने भी वैभव की नगरी को नेस्तनाबूत कर दिया लेकिन बाढ़ और भूकंप की इस त्रासदी में भी लक्ष्मण मंदिर अनूठे प्रेम का प्रतीक बनकर खड़े रहा है। हालांकि इसके बिल्कुल समीप बना राम मंदिर पूरी तरह ध्वस्त हो गया और पास ही बने तिवरदेव विहार में भी गहरी दरारें पड़ गई,लेकिन लक्ष्मण मंदिर इमारत शान से आज भी मजबूती के साथ खड़ा है।


आपको जानकर यह हैरानी हो सकती है कि यूरोपियन साहित्यकार “एडविन एराल्ड” ने इस मंदिर की तुलना प्रेम के प्रतीक ताजमहल से की है. इन्होंने ताजमहल को जीवित पत्थरों से निर्मित प्रेम की संज्ञा दी और लक्ष्मण मंदिर को लाल ईंटों से बना मौन प्रेम का प्रतीक बताया और साहित्यकार “अशोक शर्मा” ने ताजमहल को पुरूष के प्रेम की मुखरता और लक्ष्मण मंदिर को नारी के मौन प्रेम और समर्पण का जीवंत उदाहरण बताया है। उनका मानना है कि इतिहास गत धारणाओं के आधार पर ताजमहल और लक्ष्मण मंदिर का तुलनात्मक पुनर्लेखन किया जाए तो लक्ष्मण मंदिर सबसे प्राचीन प्रेम स्मारक सिद्ध होता है।



ताजमहल समय के गाल पर जमा हुआ आंसू  है, लेकिन लक्ष्मण मंदिर समय के भाल पर आज भी बिंदी सा चमक रहा है।
                                                                    “गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर”



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