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गुरुवार, 18 फ़रवरी 2021

पुरखौती मुक्तांगन रायपुर पुरखौती मुक्तांगन | Purkhouti Muktangan Raipur Chhattisgarh

 पुरखौती मुक्तांगन रायपुर पुरखौती मुक्तांगन | Purkhouti Muktangan Raipur Chhattisgarh



Hello! दोस्तों आज हम आपको छत्तीसगढ़ के रायपुर का एक लोकप्रिय पर्यटन आकर्षण “पुरखौती मुक्तांगन रायपुर पुरखौती मुक्तांगन" जो रायपुर राज्य के एक आकर्षण का केंद्र है ।






पुरखौती मुक्तांगन नया रायपुर स्थित एक पर्यटन केंद्र है। इसका लोकार्पण भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने वर्ष 2006 में किया था। मुक्तांगन 200 एकड़ भूमि पर फैला एक तरह का खुला संग्रहालय है, जहाँ पुरखों की समृद्ध संस्कृति को संजोया गया है। यह परिसर बहुत ही सुंदर ढंग से हमें छतीसगढ़ की लोक-संस्कृति से परिचित करता है। वनवासी जीवन शैली और ग्राम्य जीवन के दर्शन भी यहाँ होते हैं। छत्तीसगढ़ के प्रमुख पर्यटन केंद्रों की जानकारी भी यहाँ मिल जाती है- जैसे चित्रकोट का विशाल जलप्रपात जिसे भारत का ‘नियाग्रा फॉल’ भी कहा जाता है, दंतेवाडा के समीप घने जंगल में ढोलकल की पहाड़ी पर विराजे भगवान श्रीगणेश, कबीरधाम जिले के चौरागाँव का प्रसिद्ध प्राचीन भोरमदेव मंदिर इत्यादि। मुक्तांगन में छतीसगढ़ के पर्यटन स्थलों की यह प्रतिकृतियां दो उद्देश्य पूर्ण करती हैं। एक, आप उक्त स्थानों पर जाये बिना भी उनकी सुंदरता एवं महत्व को अनुभव कर सकते हैं। दो, यह प्रतिकृतियां मुक्तांगन में आने वाले पर्यटकों को अपने मूल पर आने के लिए आमंत्रित करती हैं।




पुरखौती मुक्तांगन की बाहरी दीवार को देखकर ही मन प्रफुल्लित हो उठता है। क्या सुंदर चित्रकारी बाहरी दीवार पर की गई है, अद्भुत। दीवार पर छत्तीसगढ़ की परंपरागत चित्रकारी से लोक-कथाओं को प्रदर्शित किया गया है। भीतर जाने से पहले सोचेंगे कि बाहरी दीवार को ही अच्छे से निहार लिया जाए और उस पर बनाए गए चित्रों से भी छत्तीसगढ़ी संस्कृति की कहानी को देख-सुन लिया जाए। मुक्तांगन में प्रवेश के लिए टिकट लगता है, जिसका जेब पर कोई बोझ नहीं आता। अत्यंत कम खर्च में हम अपनी विरासत का साक्षात्कार कर पाते हैं। जैसे ही भीतर प्रवेश करोगे, आदमकद प्रतिमाओं से स्वागत होगा । एक लंबा रास्ता हमें ‘छत्तीसगढ़ चौक’ तक लेकर जाता है, जिसके दोनों ओर लोक-जीवन को अभिव्यक्त करतीं आदमकद प्रतिमाएं खड़ी हैं। चौक से एक राह ‘आमचो बस्तर’ की ओर जाती है, जहाँ बस्तर की लोक-संस्कृति को प्रदर्शित किया गया है। दूसरी ओर छत्तीसगढ़ के महत्वपूर्ण स्थानों एवं नृत्य की झलकियाँ प्रदर्शित हैं, जिसमें पंथी नृत्य, गेड़ी नृत्य, सुवा नृत्य और राउत नाच इत्यादि को आदमकद प्रतिमाओं के जरिये दिखाया गया है। थोड़ा डूब कर देखो तो लगने लगेगा कि यह प्रतिमाएं स्थिर नहीं हैं, सचमुच नाच रही हैं। मूर्तियों के चेहरों के भाव जीवंत दिखाई देते हैं। आनंद से सराबोर हाव-भाव देखकर अपना भी नाचने का मन हो उठे। छत्तीसगढ़ के निर्माण में जिन महापुरुषों का योगदान है, उनकी आदमकद प्रतिमाएं भी इस मुक्तांगन में हैं।






‘आमचो बस्तर’ नाम से विकसित प्रखंड में बस्तर की जीवन शैली और संस्कृति के जीवंत दर्शन होते हैं। जीवंत इसलिए, क्योंकि इस प्रखंड के निर्माण एवं इसको सुसज्जित करने में बस्तर अंचल के ही जनजातीय लोक कलाकारों एवं शिल्पकारों का सहयोग लिया गया है। यही कारण है कि यहाँ बनाई गई गाँव की प्रतिकृतियां बनावटी नहीं लगतीं। आमचो बस्तर का द्वार जगदलपुर के राजमहल का सिंग डेउढ़ी जैसा बनाया गया है। समीप में ही विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरे का रथ भी रखा गया है। एक गोलाकार मण्डप में चित्रों के माध्यम से बस्तर दशहरे के संपूर्ण विधान को भी प्रदर्शित किया गया है। इस प्रखंड में धुरवा होलेक, मुरिया लोन, कोया लोन, जतरा, अबूझमाडिय़ा लोन, गुन्सी रावदेव, बूढ़ी माय, मातागुड़ी, घोटुल, फूलरथ, नारायण मंदिर, गणेश विग्रह, राव देव, डोलकल गणेश, पोलंग मट्टा, उरूसकाल इत्यादि को प्रदर्शित किया गया है। होलेक और लोन अर्थात् आवास गृह। एक स्थान पर लोहा गला कर औजार बनाने की पारंपरिक विधि ‘घानासार’ को भी यहाँ प्रदर्शित किया गया है। पुरखौती मुक्तांगन को अभी और विकसित किया जाना है। पूर्ववर्ती सरकार की इच्छा इसे आदिवासी अनुसंधान केंद्र एवं संग्रहालय के रूप में विकसित करने की थी।



परखौती मुक्तांगन छत्तीसगढ़ के पारंपरिक खान-पान का स्वाद लेने के लिए ‘गढ़ कलेवा’ नामक स्थान है । यह स्थान महंत घासीदास स्मारक संग्रहालय, रायपुर के परिसर में है। रायपुर आने वाले पर्यटकों और जो लोग अपने पारंपरिक खान-पान से दूर हो चुके हैं, उन्हें छत्तीसगढ़ी व्यंजन उपलब्ध कराने के उद्देश्य से 26 जनवरी, 2016 को गढ़ कलेवा का शुभारंभ हुआ। गढ़ कलेवा का संचालन महिला स्व-सहायता समूह द्वारा किया जाता है। यहाँ भी छत्तीसगढ़ की लोक-संस्कृति का अनुभव किया जा सकता है। बैठने के लिए बनाए गए कक्षों/स्थानों के नाम इसी प्रकार के रखे गए हैं, यथा- पहुना, संगवारी, जंवारा इत्यादि। गढ़ कलेवा परिसर में आंतरिक सज्जा ग्रामीण परिवेश की है। बरगद पर मचान बनाया गया है। बैठने के बनाए गए कक्षों को रजवार समुदाय के शिल्पियों ने मिट्टी की जालियां और भित्ति चित्र से सज्जित किया है। बस्तर के मुरिया वनवासियों ने लकड़ी की उत्कीर्ण बेंच, स्टूल, बांस के मूढ़े बनाये हैं। अपन राम ने यहाँ चीला, फरा, बफौरी जैसे छत्तीसगढ़ी व्यंजन का स्वाद लिया। इसके अलावा चौसेला, घुसका, हथफोड़वा, माड़ा पीठा, पान रोटी, गुलगुला, बबरा, पिडिय़ा, डेहरौरी, पपची इत्यादि भी उपलब्ध थे, लेकिन बफौरी थोड़ी भारी हो गई। पेट ने इस तरह जवाब किया कि ‘चहा पानी ठिहाँ’ पर चाह कर भी करिया चाय, दूध चाय, गुड़ चाय और काके पानी का स्वाद नहीं ले सका। अधिक खाने के बाद उसे पचाने के लिए तेलीबांधा तालाब पर विकसित ‘मरीन ड्राइव’ टहलने का आनंद भी उठाया जा सकता है। शाम के बाद यहाँ टहलने के लिए बड़ी संख्या में लोग आते हैं। रायपुर की मरीन ड्राइव देर रात तक गुलजार रहती है।



वहाँ पर गांववालों की आदमक़द प्रतिमाएँ भी हैं जिन्हें अपने दैनिक काम-काज करते हुए दिखाया गया है। हमारी इस यात्रा के दौरान पुरखौती मुक्तांगन में यहाँ वहां निर्माण कार्य चल रहा था। इसके बावजूद भी उस माहौल में घूमना हमारे लिए बहुत ही आनंददायी था। इस जगह के द्वारा हम भारत के ग्राम्य जीवन को देख और समझ पा रहे थे। पुरखौती मुक्तांगन का भ्रमण कर पता चलता है की कला जीवन के एक अटूट भाग हुआ करता था ना कि बस एक दिखावे की वास्तु मात्र जिसका प्रयोजन केवल हमारी दीवारों का सुसज्जित करना है।





पुरातात्विक स्थलों की प्रतिकृति और सर्वोत्कृष्ट संरचनाएं   

प्रसिद्द भोरेम देव मंदिर - छत्तीसगढ़ 

यहाँ पर प्रमुख छत्तीसगढ़ के पुरातात्विक स्थलों और सर्वोत्कृष्ट संरचनाओं का आदमक़द रचनाओं के रूप में पुनःनिर्माण किया गया है, जैसे कि भोरम देव का मंदिर और ताला की रुद्रशिव की मूर्ति। मुझे बताया गया कि इस संग्रहालय का मुख्य उद्देश्य यहाँ पर आनेवाले आगंतुकों को छत्तीसगढ़ की लोक-संस्कृति की एक छोटी सी झलक प्रदान करना है, जो अन्यथा शायद इन दूरवर्ती जगहों पर ना जाए। यहाँ पर छत्तीसगढ़ के स्वतंत्र सेनानियों की भी प्रतिमाएँ हैं।






कुल मिलाकर रायपुर के प्रवास को ‘पुरखौती मुक्तांगन’ और ‘गढ़ कलेवा’ ने आपकी समय को यादगार बना देगा । यदि आप कभी रायपुर जायें तो इन दोनों जगह जाना न भूलियेगा। पुरखौती मुक्तांगन में आपको तीन-चार घंटे का समय लेकर जाना चाहिए। गर्मी के दिनों में जाएं तो शाम के समय का चयन करें। सर्दी में किसी भी समय जा सकते हैं।







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